Saturday 1 August 2020

जब चीनियों ने घेरा बीजिंग का भारतीय दूतावास: विवेचना

बीजिंग में तैनात 1962 बैच के भारतीय विदेश सेवा के अफ़सर कृष्णन रघुनाथ के लिए 4 जून, 1967 का दिन एक सामान्य दिन की तरह शुरू हुआ. दोपहर एक बजे वो हाल में भारत से आए अपने साथी पी विजय के साथ अपनी कार में बैठे और 'स्लीपिंग बुद्धा' का मंदिर देखने वेस्टर्न हिल्स की तरफ़ निकल पड़े.रास्ते में उन्हें एक पुराने मंदिर के खंडहर दिखाई पड़े. उन्होंने अपनी कार रोकी और उस मंदिर की तस्वीरें लेने लगें. अभी वो कुछ और तस्वीरें लेने के लिए अपने कैमरे के लेंस में देख ही रहे थे कि उन्हें महसूस हुआ कि किसी ने उनके कंधे को थपथपाया है.सादे कपड़ों में एक शख़्स ने उनसे पूछा कि 'आप एक संवेदनशील सैनिक इलाके में क्यों तस्वीरें खींच रहे हैं जहाँ तस्वीरें लेना मना है?' इससे पहले कि रघुनाथ समझ पाते कि माजरा क्या है उन्हें चीनी सेना के सैनिकों ने घेर लिया. परेशान रघुनाथ ने उन्हें लाख समझाने की कोशिश की कि उनका इरादा जासूसी के लिए तस्वीरें खींचने का नहीं था, वो तो सिर्फ़ मंदिर के अवशेषों की तस्वीरें ले रहे थे, लेकिन चीनियों पर उसका कोई असर नहीं पड़ा.शाम तक ये ख़बर हर जगह फैल गई कि चीन ने भारत के दोराजनयिकों को जासूसी के अपराध में गिरफ़्तार कर लिया है. जेरोम एलन ओर हुंगदाह चियु अपनी किताब 'पीपुल्स चाइना एंड इंटरनेशनल लॉ' में लिखते हैं, 'चीनी सरकार ने रघुनाथ का कूटनीतिक दर्जा तुरंत समाप्त कर दिया और विजय को अपना पद सँभालने से पहले ही 'परसोना नॉन ग्राटा' यानि अवाँक्षित व्यक्ति घोषित कर दिया.'

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