देश की अर्थव्यवस्था और संस्कृति से गहरा नाता रखने वाला दक्षिण पश्चिम मानसून इस बार सामान्य के करीब रहने वाला है। देश भले ही कृषि प्रधान अब न रहा हो, लेकिन आज भी देश की 60 प्रतिशत उपजाऊ जमीन जून से सितंबर के बीच के चार मानसूनी महीनों में हुई बारिश पर ही निर्भर है।अर्थव्यवस्था में मानसून की अहमियत का अंदाजा महज इस बात से लगाया जा सकता है कि सामान्य से कम की एक भविष्यवाणी से अक्सर सेंसेक्स धड़ाम हो जाया करता है। कृषि एवं कृषि आधारित उत्पादों उर्वरक, ट्रैक्टर, रसायन एवं एफएमसीजी कंपनियों के शेयर गिर जाते हैं। अच्छे मानसून और सूखे वाले वर्षों में देश की अर्थव्यवस्था से लेकर विभिन्न क्षेत्रों की उत्पादकता पर पेश है एक नजर...भारतीय मौसम विभाग के अनुसार जून से लेकर सितंबर के बीच अगर बारिश दीर्घावधि का 96-104 फीसद होती है, तो उसे सामान्य मानसून माना जाता है। या फिर पिछले पचास साल की औसत बारिश, जो वर्तमान में 89 सेमी है। इस औसत के 90 फीसद से कम वर्षा को सूखे की स्थिति माना जाता है जबकि 110 फीसद से अधिक बारिश को अति मानसून की श्रेणी में रखा जाता है।
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